धीरे-धीरे खुल रहे हैं द्वार मन के, आ रही है इक सदा मनुहार बनके, आओगे तुम कब बताओ मीत मेरे, दिल में बसजाओ मेरे हक़दार बनके, चैन से जीना सिखा दो यार मुझको, कबतलक बहता रहूँ मझधार बनके, बेबसी क्या चीज है पूछो समाँ से, लड़ रही आँधी से ख़ुद लाचार बनके, नदी के तट पर खड़ा सारस अकेला, देखता हर सिम्त एक किरदार बनके, प्यार की सबको जरूरत है जहाँ में, लोग मिलते जरूरत पर यार बनके, फूल की ख़्वाहिश में भटका हूँ हमेशा, मिले हैं अबतक सभी बस खार बनके, चल पड़ा राहे वफ़ा में जबसे गुंजन, ज़िन्दगी खुशहाल है गुलज़ार बनके, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra #खुल रहे हैं द्वार मन के#