तेरे हिस्से में आईं जहां भर की खुशियां तमाम, हमारे हिस्से तो फ़क़त ज़माने के गम आये हैं। तही दस्त नहीं लौटता तेरे दर से कोई फकीर, सो तुमसे तुम्ही को पाने हम, सहर-ए-दम आये हैं। तेरे अल्फ़ाज़ों के तीरों ने यूं ज़ख्मी किया हमें, इसलिए अपनी आशनाई में खम-दर-खम आये हैं। बर्ग-ए-खिजां ने टूटते ही चूमा जो फ़र्श-ए-हज़ीं, तुमसे बिछड़ते ही हम भी आगोश-ए-ग़म आये हैं। खूब सजीं है मेरे शहर में आज महफिलें तेरी, तभी हमारी मय्यत पे अहल-ए-वफ़ा कम आये हैं। मुंतज़िर था तेरी दीद को दफन होने से पहले, वक़्त-ए-दफन आये भी तो बे-चश्म-ए-नम आये हैं। तही दस्त : Empty handed सहर-ए-दम : Early in the morning आशनाई : Relationship खम-दर-खम : Twist within twist बर्ग-ए-खिजां : Leaf of autumn फ़र्श-ए-हज़ीं : Mourning ground आगोश-ए-ग़म : Embrace of sadness अहल-ए-वफ़ा : Loyalists मुंतज़र : Expecting दीद : Seeing बे-चश्म-ए-नम : without tears in eyes ©Sameer Kaul 'Sagar' #Apocalypse