कमाने गया महबूब मेरा, वादा कर के लौट आने का। माथे पर चूमकर मेरे, दिलासा दिया लौट आने का। हाथों में थमाकर घड़ी, तोहफा दिया इतंजार का। बीत गये बरस अनेक, परदेस से आया ख़त एक। ख़त था महबूब का मेरे, हाल थे जनाब के उसमें। आने का उसमें ज़िक्र नहीं था, बुलाने का उनका इरादा नहीं था। खुश थी उस ख़त की मुझको, ग़म था कम्बख़त दूरियों का मुझको। आंखें हुई नम ख़त पढ़ के मेरी, परदेस जाने कि इक आस हुई मेरी। मगर न थी समझ,न थी पढ़ाई, मुश्किल थी परदेस में अपनी विदाई। इसलिए रहकर देस में ही अपने, इंतजार किया पिया का अपने। फिर बीत गए बरस अनेक, अब तो आया ही नहीं ख़त भी एक। हर कोशिश की उससे मिलने कि, हर कोशिश में नाकाम मैं हुई। दिन कटते थे अब यादों में उसकी, रातें कटती थी अब आंसूओं में मेरी। यूंही चलती थी गाड़ी जिंदगी की, अब यूंही चलेगी गाड़ी जिंदगी की। #love #nojoto #pardes #poetry #hindikavita