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देखो कोई अशर्फिया संजोए बैठा है, पहली किताब के आख

 देखो कोई अशर्फिया संजोए बैठा है,
पहली किताब के आखिरी पन्ने तक, 
अपने ही ख्याल पिरोए बैठा है। 
देखो कोई खुशियाँ संजोए बैठा है। 
सवा, पोने, डेड की दौड़ मे,
चेहरे की हंसी छुपाए बैठा है।
देखो कोई हजारो राज छुपाए बैठा है।
 कोई ख्वाब छुपाए बैठा है।
जिंदगी की भाग दौङ मे,
अपना वजूद गवाए बैठा है।
ताने कसते बेरोजगारो को ,
अपना बनाए बैठा है।
देखो कोई अपनी पहचान,
भुलाए बैठा है।
दिखावटी अशर्फिया संजोए बैठा है।

©PRIYANSHI MITTAL
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