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दिसंबर की ठंड हल्कू संग झबरा चल दिया खेत मे करने

दिसंबर की ठंड

हल्कू संग झबरा चल दिया खेत मे करने रखवाली
चलती ठिठुर ठिठुर पछुवा, पूष की वो रात काली
हल्कू घुटनों के बल बैठे चिलम सुलकाता
झबरा कूँ कूँ कर उसको देख पूंछ हिलाता।।

दोनों ठंड में सिकुड़, आसमा की ओर नजर उठाते
घास पत्ती डालकर बुजी आग को सुलगाते
हल्कू ने पुचकार कर झबरा के पीठ पर फेरा हाथ 
अरे वो झबरा तू क्यों आया यँहा मेरे साथ।

झबरा ने भी प्रतिउत्तर में अपनी दुम हिलायी
अलाव के समीप आकर ली अंगड़ाई
कह रहा हो मानो जैसे रात अभी बाकी है
चलो साथ में गपशप कर लो अभी बात बाकी है।

हल्कू की सर्द रात से रूह काँप रही है
गरीबी उसकी भाग्य रेखा को कोस रही है
झबरा को खेत में जानवरो की आहट दी सुनायी
भौं भौ कर हल्कू को उठने के लिये आवाज लगायी।।

हल्कू अलगाव की गरमाहट गहरी नींद में सो गया
बेचारा झबरा सारी रात भौकता रह गया
देह गर्म करने को राख में दुबक गया
पूष की सर्द रात ठंड में अपने कर्तव्य से हार गया।।

सुबह जब हल्कू ने देखा खेत जानवर खा गए
गरीब को एक और मौत मार गए
झबरा से बोला खेत तो जानवर खा गए
चलो हमको दिसम्बर की ठंड से तो बचा गये।।  

©® @ हरीश कंडवाल मनखी की कलम से। 📝📝📝✒ दिसम्बर की ठंड
दिसंबर की ठंड

हल्कू संग झबरा चल दिया खेत मे करने रखवाली
चलती ठिठुर ठिठुर पछुवा, पूष की वो रात काली
हल्कू घुटनों के बल बैठे चिलम सुलकाता
झबरा कूँ कूँ कर उसको देख पूंछ हिलाता।।

दोनों ठंड में सिकुड़, आसमा की ओर नजर उठाते
घास पत्ती डालकर बुजी आग को सुलगाते
हल्कू ने पुचकार कर झबरा के पीठ पर फेरा हाथ 
अरे वो झबरा तू क्यों आया यँहा मेरे साथ।

झबरा ने भी प्रतिउत्तर में अपनी दुम हिलायी
अलाव के समीप आकर ली अंगड़ाई
कह रहा हो मानो जैसे रात अभी बाकी है
चलो साथ में गपशप कर लो अभी बात बाकी है।

हल्कू की सर्द रात से रूह काँप रही है
गरीबी उसकी भाग्य रेखा को कोस रही है
झबरा को खेत में जानवरो की आहट दी सुनायी
भौं भौ कर हल्कू को उठने के लिये आवाज लगायी।।

हल्कू अलगाव की गरमाहट गहरी नींद में सो गया
बेचारा झबरा सारी रात भौकता रह गया
देह गर्म करने को राख में दुबक गया
पूष की सर्द रात ठंड में अपने कर्तव्य से हार गया।।

सुबह जब हल्कू ने देखा खेत जानवर खा गए
गरीब को एक और मौत मार गए
झबरा से बोला खेत तो जानवर खा गए
चलो हमको दिसम्बर की ठंड से तो बचा गये।।  

©® @ हरीश कंडवाल मनखी की कलम से। 📝📝📝✒ दिसम्बर की ठंड