खूबसूरती उसकी नजाकत में थी अभिमान उसे बुलंदी के सुरूर में हुआ, उसकी मुस्कान से सजा सांवरा था घर खुद का काबिल होना उसे ले गया किधर, ऐसा नहीं कि चारदीवारी में सिमटो मगर अपनी मिठास हमेशा बरकरार रखो,, क्यों घुल जाती है तुम पर चिड़चिड़ाहट किसी ऊंचे पद की सकपाकाहट,, माना तुमने मेहनत की है बेशुमार संभाला है शिद्दत से घर और बाहर,,