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ग़ज़ल :- आज रिश्तों में रिश्ते बचे कुछ नही । आज अपनो

ग़ज़ल :-
आज रिश्तों में रिश्ते बचे कुछ नही ।
आज अपनों से अपने कहे कुछ नही ।।

मोह जिस बाप में आज औलाद का ।
उनको धृतराष्ट्र खुद में दिखे कुछ नही ।।

माफ़ कर दो उन्हें आज नादान वो ।
हमको लगते अभी वो बुरे कुछ नही ।।

जिनकी आखों पे चश्मा चढ़ा प्यार का ।
ऐब अपनों में उनको मिले कुछ नही ।

चुप रहा और देखा तमाशा सभी ।
उनको ऊँचा किया पर झुके कुछ नही ।।

इस तरह तोड़ अभिमान मेरा दिया ।
सिर उठाना भी चाहूँ उठे कुछ नही ।।

मिट गये है वहम अपने पन के सभी ।
कह दिया है प्रखर तुम रहे कुछ नही ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :-


आज रिश्तों में रिश्ते बचे कुछ नही ।

आज अपनों से अपने कहे कुछ नही ।।
ग़ज़ल :-
आज रिश्तों में रिश्ते बचे कुछ नही ।
आज अपनों से अपने कहे कुछ नही ।।

मोह जिस बाप में आज औलाद का ।
उनको धृतराष्ट्र खुद में दिखे कुछ नही ।।

माफ़ कर दो उन्हें आज नादान वो ।
हमको लगते अभी वो बुरे कुछ नही ।।

जिनकी आखों पे चश्मा चढ़ा प्यार का ।
ऐब अपनों में उनको मिले कुछ नही ।

चुप रहा और देखा तमाशा सभी ।
उनको ऊँचा किया पर झुके कुछ नही ।।

इस तरह तोड़ अभिमान मेरा दिया ।
सिर उठाना भी चाहूँ उठे कुछ नही ।।

मिट गये है वहम अपने पन के सभी ।
कह दिया है प्रखर तुम रहे कुछ नही ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :-


आज रिश्तों में रिश्ते बचे कुछ नही ।

आज अपनों से अपने कहे कुछ नही ।।