Nojoto: Largest Storytelling Platform

आओ खेलें हम यहाँ , लुका छुपी का खेल । मन्नू की तो

आओ खेलें हम यहाँ , लुका छुपी का खेल ।
मन्नू की तो आ रही , देखो छुक-छुक रेल ।।११

बापू आज पतंग मैं , दूँगा सबकी काट ।
बहुत लगे हैं बोलने , यह अच्छी है डाट ।।१२

बापू तेरा हाथ मैं , चलूँ पकड़कर संग ।
तू ही आगे भागता , दुनिया है बेरंग ।।१३

गैरो की आने लगे , जब अपनों को याद ।
ऐसा ही होगा सदा , जब ऐसी औलाद ।।१४

मातु-पिता को गैर जब , मान रही औलाद ।
फिर तो पश्चाताप का ,  चखना ही है स्वाद ।।१५

कुछ भी कह लो बात तुम , बच्चे दें ना ध्यान ।
मातु-पिता के अंत में , बस रह जाते प्रान ।।१६

चका-चौंध में हो गये , टुकड़े अब पैंतीस ।
मातु-पिता की मानती , निकली होती खीस ।।१७

चाँद हुआ है मध्य में , देख रहा है चकोर ।
पल-पल आहें भर रहा , देख उसी की ओर ।।१८

१६/११/२०२२    -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दोहे :-

युगल प्रेमियों के लिए , अच्छी होती ठण्ड़ ।
बच्चों बूढ़ों को सदा , देती रहती दण्ड़ ।।१

ऊनी कपड़ो के सभी , दूर करो अब गंध ।
शीत-लहर चलने लगी , कर लो सभी प्रबंध ।।२
आओ खेलें हम यहाँ , लुका छुपी का खेल ।
मन्नू की तो आ रही , देखो छुक-छुक रेल ।।११

बापू आज पतंग मैं , दूँगा सबकी काट ।
बहुत लगे हैं बोलने , यह अच्छी है डाट ।।१२

बापू तेरा हाथ मैं , चलूँ पकड़कर संग ।
तू ही आगे भागता , दुनिया है बेरंग ।।१३

गैरो की आने लगे , जब अपनों को याद ।
ऐसा ही होगा सदा , जब ऐसी औलाद ।।१४

मातु-पिता को गैर जब , मान रही औलाद ।
फिर तो पश्चाताप का ,  चखना ही है स्वाद ।।१५

कुछ भी कह लो बात तुम , बच्चे दें ना ध्यान ।
मातु-पिता के अंत में , बस रह जाते प्रान ।।१६

चका-चौंध में हो गये , टुकड़े अब पैंतीस ।
मातु-पिता की मानती , निकली होती खीस ।।१७

चाँद हुआ है मध्य में , देख रहा है चकोर ।
पल-पल आहें भर रहा , देख उसी की ओर ।।१८

१६/११/२०२२    -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दोहे :-

युगल प्रेमियों के लिए , अच्छी होती ठण्ड़ ।
बच्चों बूढ़ों को सदा , देती रहती दण्ड़ ।।१

ऊनी कपड़ो के सभी , दूर करो अब गंध ।
शीत-लहर चलने लगी , कर लो सभी प्रबंध ।।२