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नादान ज़िंदगी उलझी रही तेरा-मेरा में तब-तक धीरे-से

नादान ज़िंदगी
उलझी रही तेरा-मेरा में
तब-तक धीरे-से उमर सरक गई 
समय की गाड़ी में बैठ
ज़िंदगी में की नादानियाँ
अब क्यों पछ्ताए समय बीते
अपने दिल की सुन न पाए
अंत समय हाथ जाएंगे रीते
मौज-मस्ती करने में
बिता दिया वर्तमान सुनहरा
अपने कल की फ़िक्र न कर
भविष्य को किया अंधेरे
तब तो की खूब नादानियाँ
अब किस बात से घबराना
यह राह जो तुमने चुनी
उस राह पर अकेले चलते जाना
अब न अपने काम आएंगे
और न कोई साथी
ज़िंदगी की तकलीफों के
हम ही सवारी और सारथी

_अनुराधा चौहान ✍️ #नादानियाँ
नादान ज़िंदगी
उलझी रही तेरा-मेरा में
तब-तक धीरे-से उमर सरक गई 
समय की गाड़ी में बैठ
ज़िंदगी में की नादानियाँ
अब क्यों पछ्ताए समय बीते
अपने दिल की सुन न पाए
अंत समय हाथ जाएंगे रीते
मौज-मस्ती करने में
बिता दिया वर्तमान सुनहरा
अपने कल की फ़िक्र न कर
भविष्य को किया अंधेरे
तब तो की खूब नादानियाँ
अब किस बात से घबराना
यह राह जो तुमने चुनी
उस राह पर अकेले चलते जाना
अब न अपने काम आएंगे
और न कोई साथी
ज़िंदगी की तकलीफों के
हम ही सवारी और सारथी

_अनुराधा चौहान ✍️ #नादानियाँ