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anuradhanarendra8456
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Anuradha Narendra Chauhan

भावनाओं को शब्दों में समेटने की कोशिश

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Anuradha Narendra Chauhan

आक्रोश भरा जन-जन में
झुलसी फिर बेटी नगर में
सुनो देश के तुम युवाओं
चुल्लू भर पानी में मर जाओं
क्यों नीयत इतनी सड़ी है
बेटी नहीं कोई लकड़ी है
जिंदा जिसे जला डाला
क्षण भर भी हृदय नहीं कांपा
घर में क्या औरत नहीं
या दिल में अब गैरत नहीं
थक गए अब कानून से
जो सने बेटियों के खून से
आरोपी फिर होंगे बरी
फिर जलेगी निर्भया किसी गली।
***अनुराधा चौहान*** स्वरचित ✍️ #आक्रोश
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Anuradha Narendra Chauhan

साँझ  सांझ ढल रही है लेकर रौनकें सारी,
बहार सिमट रही है तम हो रहा है हावी,
आशा के फूल झरकर धरा पे बिखर गए हैं,
घर लौट रहें हैं पंछी मेरे घर में है वीरानी। #सांझ
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Anuradha Narendra Chauhan

किस प्रेम की परिभाषा दूँ
प्रेम लिखने की वजह नहीं
रग-रग में बसी यह अनुभूति
कैसे शब्दों में बयां कर दूँ

प्रेयसी के दिल के भाव लिखूँ
या में लिख डालूँ माँ की ममता
करवाचौथ के व्रत में छुपा हुआ
सुहागिन का पति प्रेम लिखूँ

कठोरता का ओड़ आवरण
पिता के हृदय बसा प्रेम लिखूँ
कवि हृदय में बसा हुई
रचनाओं से उनकी  प्रीत लिखूँ

किस प्रेम की परिभाषा दूँ
प्रेम लिखने की वजह नहीं
रग-रग में बसी यह अनुभूति
कैसे शब्दों में बयां कर दूँ #प्रेम #अनुभूति
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Anuradha Narendra Chauhan

चट्टानों से अटल इरादे लिए
मन में कुछ पाने की चाह लिए
हम सजे-संवरे निकल पड़े
राहों में कितने मोड़ पड़े
हर मोड़ पे एक तजुर्बा नया
जीवन का देखा रूप नया
जीना उतना नहीं है सरल
पग-पग पीते यहाँ लोग गरल
कोई भी राह आसान नहीं
विषधरों की कोई पहचान नहीं
फिर भी बढ़ना स्वभाव मेरा
मंज़िल पाना है स्वप्न मेरा
चुनौतियों से लड़ती रही
हिम्मत से आगे बढ़ती गई
काँटे अधिक फूल कम मिले
खुशियों से ज्यादा गम मिले
पर मनोबल नहीं टूटने दिया
जलता रहा आँधियों में दिया
मजबूत इरादों से अपने
किया रोशन नाम जग में अपना #आँधियो में दिया

#आँधियो में दिया #कविता

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Anuradha Narendra Chauhan

नहीं भूल पाते तेरी खुली आँखो का दर्द
अस्पताल में मशीनों से घिरा तेरा बदन
चेहरे पे उमड़ती बिछुड़ने की पीड़ा
हम सबकी उम्मीद ने दामन छोड़ा
जीवन की डोर पल-पल टूटती थी
साँस तेरे तन से नाता तोड़ती थी
नहीं भूलता है आँखों से वो मंजर
किस्मत ने जड़ा मेरी पीठ में वो खंजर
अभी-भी यह एहसास है तुम यहीं हो
नहीं भूल पाते हम तेरा मुस्कुराना
वो पीछे से आकर सिर पर चपत लगाना
राखी के पर्व सबसे पहले राखी बंधवाना
पैर छूने के बहाने धीरे-से नोंच जाना
तिरछी हँसी, चेहरे का भोलापन
मेरी नाराज़गी को मिटा देता पल में
सोचती जब भी मैं अकेली होकर
किस बात की सजा मिली तुम्हें खोकर
त्यौहार पर अब नहीं रहा फोन का इंतजार
घंटी बजते ही आता मन में तेरा ख्याल
फोन नंबर, फेसबुक पर अब भी जुड़े हो
पर असलियत में पहुँच से दूर हो
कैसे जी रही हूँ यह मैं जानती हूँ
इस कटु सत्य को नहीं स्वीकार पाती हूँ #तेरा#मुस्कुराना
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Anuradha Narendra Chauhan

#दिल में #बसी #तस्वीर तेरी

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Anuradha Narendra Chauhan

#सजदा
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Anuradha Narendra Chauhan

पलकें बिछाए बैठी
कान्हा,राधा तेरे प्यार में
कहाँ छुपे तुम ओ गिरधारी
झलक दिखला इक बार में
तेरे प्रेम में सब कुछ भूली
चली अकेली मैं नार-नवेली
तुझसे मिलने की चाह लिए
मन में प्रीत के भाव लिए
यमुना किनारे बंशी-बजैया
मैं सुध-बुध अपनी खो बैठी
सांवरिया तेरी याद में खोई
मैं वृंदावन को निकल पड़ी
तुझसे मिलने आई मैं सांवरे
दर्श दिखा तरसा ना सांवरे
दूर न तुझसे मैं रह पाऊँ
बंशी की धुन पर दौड़ी आऊँ
घर-बाहर रास्ते-चौबारे
ढूँढ रही हूँ यमुना किनारे 
बंसीवट की छैंया 
कहाँ छुपे हो जाकर
नटखट कृष्ण कन्हैया
बीती रही रैना चंदा छुपा जाए
श्याम तुम बिन अब रहा न जाए #पलकें #बिछाए
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Anuradha Narendra Chauhan

अकेले आए,अकेले जाएंगे
सब-कुछ पीछे छोड़ जाएंगे
आओ मिलकर बांट लें हम
सुख-दुख आधा-आधा
मदद करें एक-दूसरे की
करके हम सब यह वादा
क्या मिला है अबतक
अपने लिए ही जीकर
मुस्कान किसी के चेहरे पर
सजा सके तो अच्छा हो
दिखावे की सेवा न करो
जो करो दिल से करो
दीन-दुखियों की सहायता
और बुजुर्गो को खुश रखना
सबसे बड़ी सीढ़ी है यह
हमारे सुखद भविष्य की
यह सीख दे नयी पीढ़ी को
जो अनुसरण हमारा करते
यह संस्कार ही हैं हमारे
उनके दिलो-दिमाग में उपजते
_अनुराधा चौहान✍️ #दिखावा
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Anuradha Narendra Chauhan

पथरीले रास्ते पर चलने से डर गए 
कैसे मंज़िल मिलेगी
कैसे सफर तय होगा
खुशियाँ भी मिलती हैं
तो मुश्किलों से गुजरकर
राह में पत्थर बिछे हैं
आगे फूल भी कदमों में होंगे

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