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करलो तुम पहचान समय की, हो प्रशस्त जब राह विजय की,

करलो तुम पहचान समय की,
हो प्रशस्त जब राह विजय की, 

बाँधो   पाल   नाव  में  अपनी,
जानपरख लो दिशा मलय की,

अनुभवजन्य  मार्ग  अपनाओ,
आमंत्रण  ठुकराओ प्रलय की, 

पतझर  बाद  शज़र  पर  लौटे, 
फिर बहार नूतन किसलय की,

अंदर-बाहर  छिड़े  युद्ध  जब,
बात  सुनो बस एक हृदय की,

सृजन हार हर श्वास में बसता,
जगह  न  कोई  है  संशय की,

'गुंजन' जीवन सफल बनाओ, 
जीत सुनिश्चित दृढ़ निश्चय की,
   --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
      चेन्नई तमिलनाडु

©Shashi Bhushan Mishra #करलो तुम पहचान समय की#
करलो तुम पहचान समय की,
हो प्रशस्त जब राह विजय की, 

बाँधो   पाल   नाव  में  अपनी,
जानपरख लो दिशा मलय की,

अनुभवजन्य  मार्ग  अपनाओ,
आमंत्रण  ठुकराओ प्रलय की, 

पतझर  बाद  शज़र  पर  लौटे, 
फिर बहार नूतन किसलय की,

अंदर-बाहर  छिड़े  युद्ध  जब,
बात  सुनो बस एक हृदय की,

सृजन हार हर श्वास में बसता,
जगह  न  कोई  है  संशय की,

'गुंजन' जीवन सफल बनाओ, 
जीत सुनिश्चित दृढ़ निश्चय की,
   --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
      चेन्नई तमिलनाडु

©Shashi Bhushan Mishra #करलो तुम पहचान समय की#

#करलो तुम पहचान समय की# #कविता