नीयत से साफ गुमां से सच्चे नही रहे, इबादत में तस्बीह दुआ में धागे नही रहे, अब मुझसे दूर कहीं गैर शहर में है तू, फासलों में इज़ाफो से क्या नाते नही रहे, हिज़्र ने घेरा हमे इस कदर तन्हा, गमों से उलझे कि इरादे नही रहे, इतना भी नहीं मुफलिस कि दूं तुम्हे तसल्ली, क्या अब हमारी जेब मे वादे नहीं रहे.... अब मुझसे दूर कहीं गैर शहर में है तू, फासलों में इज़ाफो से क्या नाते नही रहे....