आज के हालात पर एक ग़ज़ल... नफ़रत की आग जलने लगी तेरे शह्र में ये बात आज खलने लगी तेरे शह्र में जो आश्ना थे कल मिरे सब गुम कहाँ हुए हिजरत की चाह पलने लगी तेरे शह्र में मरने का मारने का ये क्या दौर आ गया जीने की आस टलने लगी तेरे शह्र में मेरा यहाँ से ठोर-ठिकाना उजड़ गया आँधी अजीब चलने लगी तेरे शह्र में क़ुदरत ख़फ़ा हुई न कहीं लाए ज़लज़ला करवट ज़मीं बदलने लगी तेरे शह्र में काली घटा की क़ैद में वो कब तलक रहे अब चाँदनी मचलने लगी तेरे शह्र में हर दिल में कौन भरने लगा दुश्मनी 'शिखा' शफ़क़त भी हाथ मलने लगी तेरे शह्र में ©Pallavi Mishra #नफ़रत#युद्व#war#अशांति #तबाही#विनाश