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बस इतने में हांफ रहे हो, डर से थर-थर कांप रहे हो

बस इतने में  हांफ  रहे हो,
डर से थर-थर कांप रहे हो,

मारे जाओगे एक दिन सब,
आस्तीन  के  सांप  रहे हो,

रंग बदलने में  तुम  माहिर,
गिरगिट के भी बाप रहे हो,

सिर्फ़ सियासत धर्म-कर्म है,
फूंक दिया घर  ताप रहे हो,

पोल खुली तो बिल में दुबके,
तुम कब रस्ता  नाप रहे हो,

पढ़े-लिखे भी बैल बुद्धि ही,
लगते   झोलाछाप   रहे हो,

भूंक रहे  अपनी  गलियों से,
कभी तो लल्लन टाप रहे हो,

'गुंजन' घड़ा फूटना तय था,
अबतक  भरते  पाप रहे हो,
--शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
        प्रयागराज उ०प्र०

©Shashi Bhushan Mishra #बस इतने में#
बस इतने में  हांफ  रहे हो,
डर से थर-थर कांप रहे हो,

मारे जाओगे एक दिन सब,
आस्तीन  के  सांप  रहे हो,

रंग बदलने में  तुम  माहिर,
गिरगिट के भी बाप रहे हो,

सिर्फ़ सियासत धर्म-कर्म है,
फूंक दिया घर  ताप रहे हो,

पोल खुली तो बिल में दुबके,
तुम कब रस्ता  नाप रहे हो,

पढ़े-लिखे भी बैल बुद्धि ही,
लगते   झोलाछाप   रहे हो,

भूंक रहे  अपनी  गलियों से,
कभी तो लल्लन टाप रहे हो,

'गुंजन' घड़ा फूटना तय था,
अबतक  भरते  पाप रहे हो,
--शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
        प्रयागराज उ०प्र०

©Shashi Bhushan Mishra #बस इतने में#