ग़ज़ल_غزل: २११ -------------------------- 2122-2122-212 था निभाना सख़्त ज़रदारों के बीच मैं कहाँ टिकता अदाकारों के बीच //१ दिख ही जाता है अलग से भीड़ में एक आबिद सौ गुनहगारों के बीच //२ चाहिए उसको थके हारे बदन नींद मर जाती है बेदारों के बीच //३ प्यार है दो मुल्क के अक़्वाम में पर है नफ़रत उनकी सरकारों के बीच //४ दे दिया ज़रदार की बेटी को दिल चुन दिया जाऊँ न दीवारों के बीच //५ कब तलक ज़िंदा बचेगा तुम कहो एक सेहतमंद बीमारों के बीच //६ रात को बोटी का चखना और मय है बहुत मशहूर सरदारों के बीच //७ ज़ब्त हो कर आई थी ठेके से राज़ बँट गई दारू हवलदारों के बीच //८ #राज़_नवादवी© ज़रदार- धनी व्यक्ति; अदाकार- अभिनयकार; आबिद- इबादत करने वाला, तपस्वी; बेदार- जागा हुआ, जागृत; अक़्वाम- क़ौम का बहुवचन, बिरादरियाँ; बोटी- माँस का टुकड़ा; मय- शराब #Hair