Rain बादल और मैं मैं और बादल कभी गर्जन कभी महक कभी थे बरखा संग लहराते पेड़-पौधे मुस्कुरा रहे हवा के संग चेहरे पर रौनक बहार जो थी हर-तरफ भीगने लगे पँछी भीगने लगे पेड़-पौधे महकने लगी घास धरा की नाचने लगी बूंदे बारिश की भीग लिए हम तन-मन से खो गए कंही प्रकृति में आँखें मुस्कुरा रही धरती अंबर से राग अलाप रही हो गए दोनों एकाकार जैसे खुल गए दिल के नयन सौंधी-सौंधी महक धरा की फैल गई दिल से दिल तक मौन मुस्कानें जाग उठी। है न स्वप्न...! #rain