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"खोज औऱ कवि" तुमको क्या बताये की तुमसे इश्क़ करते ह

"खोज औऱ कवि"
तुमको क्या बताये की तुमसे इश्क़ करते हैं,
न जाने कैसे और क्यो सिर्फ तुम पर ही मरते हैं,
तुमको देखा जिस जगह वो कुछ अनजानी थी,
उस वक़्त तक तुम बेगानी थी,
न तुमसे मिले न कोई बात ही हुई,
एक कोने में दिल के न जाने तुझसे क्या बात हुई,
वो जगह छोड़ आए, पूरे रास्ते खोज आये,
नाम पता कुछ भी न जाने फिर भी तुम्हें अपना बनाये,
न जाने कितनी रात जागे बस एक आस में,
शायद मिल जाओगी ख्वाब में बैठोगी पास में,
तुमको नज़र अंदाज करने की कोशिश करते हैं,
और न जाने किस तरह तुम पर ही मरते हैं,
फिर सहेली से तुम्हारी  मेरी बात हुई,
इश्क़ में डूबे हुए लब्जों की बरसात हुई,
की ढूंढने को पता तुम्हारा घूम रहा एक आवारा,
क्या बातये,कैसे बताये,कि तुम न मिली तो मर जायेगा बेचारा,
तुम्हारी ख़ोज किस तरह समय के साथ बदल गयी,
देख कर तुमको बच्चे के साथ खेलते मुझे भी हँसी आ गयी,
शक्ल में मासूम की जो तुम दिखी और तुममे ममता की वो छवि,
अनायास ही एक आशिक़ बन बैठा अधूरा कवि।
विवेक सिंह राजावत।

 कवि बनाने का शुक्रिया अनजान शक्स
"खोज औऱ कवि"
तुमको क्या बताये की तुमसे इश्क़ करते हैं,
न जाने कैसे और क्यो सिर्फ तुम पर ही मरते हैं,
तुमको देखा जिस जगह वो कुछ अनजानी थी,
उस वक़्त तक तुम बेगानी थी,
न तुमसे मिले न कोई बात ही हुई,
एक कोने में दिल के न जाने तुझसे क्या बात हुई,
वो जगह छोड़ आए, पूरे रास्ते खोज आये,
नाम पता कुछ भी न जाने फिर भी तुम्हें अपना बनाये,
न जाने कितनी रात जागे बस एक आस में,
शायद मिल जाओगी ख्वाब में बैठोगी पास में,
तुमको नज़र अंदाज करने की कोशिश करते हैं,
और न जाने किस तरह तुम पर ही मरते हैं,
फिर सहेली से तुम्हारी  मेरी बात हुई,
इश्क़ में डूबे हुए लब्जों की बरसात हुई,
की ढूंढने को पता तुम्हारा घूम रहा एक आवारा,
क्या बातये,कैसे बताये,कि तुम न मिली तो मर जायेगा बेचारा,
तुम्हारी ख़ोज किस तरह समय के साथ बदल गयी,
देख कर तुमको बच्चे के साथ खेलते मुझे भी हँसी आ गयी,
शक्ल में मासूम की जो तुम दिखी और तुममे ममता की वो छवि,
अनायास ही एक आशिक़ बन बैठा अधूरा कवि।
विवेक सिंह राजावत।

 कवि बनाने का शुक्रिया अनजान शक्स