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बिन पानी का बादल ))))))))))(((((((((( बिन पानी का

बिन पानी का बादल
))))))))))((((((((((
बिन पानी का बादल , बन बैठा है ख्वाब हमारा,
तुफान इसे झकझोर रही है।
निल गगन के निचे हिन्दुस्तान हमारा,
इंसानियत को खोज रही है।
वक्त है सम्भाल लो इस धरती को , स्वार्थ हीं सही ।।
क्यों कि यह धरती इंसानों कि है ,
राम - कृष्ण - बूद्ध और विर शहीद जवानों कि है।
नहीं हिन्दू , नहीं सिक्ख , इसाई , नहीं मुसलमानों की है।
यह धरती केवल इंसानों कि है।।
यहां नारी सीता और मीरा बन कर जन्मी।।
लक्षमी बाई और इंदिरा बन कर जन्मी।
इस मिट्टी कि उपज सर्वोत्तम संस्कार है हमारा,
इस देश का हर मौसम , सारे जहां से है प्यारा।
पर अफसोस हमें सताती है।।
देख - देख चाणक्य कि हर पंक्ति ‌हरदम इठलाती है।
देख राजनीतिक माहौल आज का,
बेशर्मो को भी लज्जा आती है।
एकांत सूखे पेड़ों पर बैठे , सूखे आंखों से कोयल,
रो - रो कर दिल दहलाती है।
फिर भी यह धरती , भारत मां कहलाती है।।

©pramod malakar #बिन पानी का बादल।
बिन पानी का बादल
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बिन पानी का बादल , बन बैठा है ख्वाब हमारा,
तुफान इसे झकझोर रही है।
निल गगन के निचे हिन्दुस्तान हमारा,
इंसानियत को खोज रही है।
वक्त है सम्भाल लो इस धरती को , स्वार्थ हीं सही ।।
क्यों कि यह धरती इंसानों कि है ,
राम - कृष्ण - बूद्ध और विर शहीद जवानों कि है।
नहीं हिन्दू , नहीं सिक्ख , इसाई , नहीं मुसलमानों की है।
यह धरती केवल इंसानों कि है।।
यहां नारी सीता और मीरा बन कर जन्मी।।
लक्षमी बाई और इंदिरा बन कर जन्मी।
इस मिट्टी कि उपज सर्वोत्तम संस्कार है हमारा,
इस देश का हर मौसम , सारे जहां से है प्यारा।
पर अफसोस हमें सताती है।।
देख - देख चाणक्य कि हर पंक्ति ‌हरदम इठलाती है।
देख राजनीतिक माहौल आज का,
बेशर्मो को भी लज्जा आती है।
एकांत सूखे पेड़ों पर बैठे , सूखे आंखों से कोयल,
रो - रो कर दिल दहलाती है।
फिर भी यह धरती , भारत मां कहलाती है।।

©pramod malakar #बिन पानी का बादल।