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कई ख़्वाब इन आंखों में पलकों से दब गए अलग बात है

कई ख़्वाब इन आंखों में पलकों से दब गए 
अलग बात है उन्हें कभी किसी ने निहारा नहीं
सोंचता था कोई रहबर मिलेगा मंजिल की राह में
गफलत में था यहां कोई किसी का सहारा नहीं
निकाल सकूं पैरों के कांटों को हौसला तो था ही
पर किसी के पैरों में झुक जाऊं मुझे गवारा नहीं
सुबह दोपहर शाम हो गई तो रात होगी ही
अगर कुछ बदले नहीं जहां में फिर नजारा नहीं
वो कहते हैं जल्द ही भूल जाते हो याद नहीं रखते
पत्थरों की चोट से मर जाऊं मैं वो दीवाना नहीं
थोड़ी सी हलचल से घबड़ा जाते हो तुम भी
ये जिंदगी तो एक लहर है कोई किनारा नहीं

©Rudradeep
  #safar
#लहर