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*༺꧁ श्रीԶเधॆ श्रीԶเधॆ꧂༻* *नयन का नयन से, नमन हो रह

*༺꧁ श्रीԶเधॆ श्रीԶเधॆ꧂༻*
*नयन का नयन से, नमन हो रहा है*
*लीजिए उषा का आगमन हो रहा है*

*परत दर परत, चांदनी कट रही है*
*तभी तो निशा का, गमन हो रहा है*

*बिछौनों पर अभी भी हैं, अलसाये सपने*
*पलक खोल कर भी, जो शयन हो रहा है*

*क्षितिज पे प्राची की पहली किरण का*
*ज्यों लहर से प्रथम आचमन हो रहा है*

*हैं नहला रहीं, हर कली को तुषारें*
*लगन पूर्व कितना जतन हो रहा है*

*वहीं शाख पर पँक्षियों का है कलरव*
*प्रभाती-सा लेकिन, सहन हो रहा है* 

*बढ़ी जा रही जिस तरह से अरुणिमा*
*है लगता की कहीं पर हवन हो रहा है*

*मधुर मुक्त आभा, सुगंधित पवन है*
*नये दिन का कैसा सृजन हो रहा है।*

©Aaradhana Anand प्रभात Mohan raj Classical gautam बाबा ब्राऊनबियर्ड Sudha Tripathi Yadav Ravi