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इसको परखा उसको परखा, तन्हाई में ख़ुद को परखा। ***

इसको परखा उसको परखा,
तन्हाई में ख़ुद को परखा।
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छुपी वेदना हँसकर पूछे,
कब-कब तुमने मुझको परखा।
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मुझे परखने वाले कम हैं,
जिसने हरदम ग़म को परखा।
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सारे रिश्ते बेमानी हैं,
अब तक दिल ने सबको परखा।
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सरस लगे बस वो ही साथी,
दुःख में जब ईश्वर को परखा।

©सतीश तिवारी 'सरस' 
  #एक_ग़ज़ल