सरसी छन्द ~गीत करते हो किन बातों पर तुम , अब इतना अभिमान । आज धरा को बना रहा है , मानव ही शमशान ।। करते हो किन बातों पर तुम ... भूल गये सब धर्म कर्म को , भूले सेवा भाव । नगर सभी पीछे है दिखते , दिखते आगे गाव ।। मानवता रोती है बैठी , सुन्न पड गये कान । पत्थर के महलों में रहकर , पत्थर है इंसान ।। करते हो किन बातों पर तुम .... माया के पथ पर चलकर ही , खोई है पहचान । असली दौलत से इंसा यह , अब भी है अन्जान ।। किसको देवे दोष आज हम , सूना पड़ा विहान । सुख की खातिर भटक रहा है , मानव बन शैतान ।। करते हो किन बातों पर तुम... क्यों मुर्गे की बाँग सुने यह , क्यों कागा के बोल । व्यर्थ ही शोर मचाते है यह , पास घड़ी अनमोल ।। मिटे फूस के घर को देखो , बनता आज महान । जंगल-जंगल उजड़ गये है , राहें हैं वीरान ।। करते हो किन बातों पर तुम .... रही नही देखो अब छाया , राही है हैरान तरस रहे पानी को सब ही , कोई नही निदान ।। काले-काले मेघ दिखे जो , लाये अब तूफान । दिखा रही है प्रकृति सभी को , अपनी ऊँची शान ।। करते हो किन बातों पर तुम .... अभी समझ लो भाई मेरे , कुदरत का फरमान । ढ़ह जायेगी दुनिया सारी , खाली रहें मकान ।। दौलत के दम पर कितने दिन , पाओगे सम्मान । पानी वाले बादल अब तो , दिखते न आसमान ।। करते हो किन बातों पर तुम ..... करते हो किन बातों पर तुम , अब इतना अभिमान । आज धरा को बना रहे क्यों , तुम ही अब शमशान ।। ०२/०६/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR चित्र चिंतन :- सरसी छन्द ~गीत करते हो किन बातों पर तुम , अब इतना अभिमान । आज धरा को बना रहा है , मानव ही शमशान ।। करते हो किन बातों पर तुम ... भूल गये सब धर्म कर्म को , भूले सेवा भाव । नगर सभी पीछे है दिखते , दिखते आगे गाव ।।