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खुद की परछाई से अब डर लगता है कब साथ छोड़ दे कहां

खुद की परछाई से अब डर लगता है
कब साथ छोड़ दे कहां पता चलता है

सांसों की डोर भी कमजोर पड़ी
मन है कि जीने को और करता है
खुद की परछाई से अब डर लगता है
 कब साथ छोड़ दे कहां पता चल
 
लालसा आशा से जी कहां भरता है
जितना भी मिले जीवन में कम लगता है
खुद की परछाई से अब डर लगता है
 कब साथ छोड़ दे कहां पता चलता है

©kanchan Yadav
  #लालसा