पुरुष स्वयं को ढाल लेता है भावनाओं को नियंत्रित करके सबकुछ सहकर भी रहता है अटल सा किसी " पर्वत" की तरह... स्त्री स्वयं को ढाल लेती है स्वयं को स्वयं तक सीमित करके सबकुछ आपने भीतर सहेज कर भी शांत सी किसी "समुद्र" की तरह....... मैंने अक्सर देखा है समुद्र की लहरों को पर्वत से टकराते हुए बदलाव का दौर पुरुष स्वयं को ढाल लेता है भावनाओं को नियंत्रित करके सबकुछ सहकर भी रहता अटल सा किसी " पर्वत" की तरह... स्त्री स्वयं को ढाल लेती है