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R K Mishra " सूर्य "
...…..जमाना बदल गया है.….. अगर आप दुश्मनी बढ़ाना चाहते हैं तो किसी की कमियों का बखान कीजिए और अगर संबंध लंबा चलाना चाहते तो खूब जमकर किसी का गुणगान कीजिए रिश्ते दिल और दिमाग से निभाए जाते हैं ये बात सत्य है परखने को ध्यान कीजिए अगर सामान्य जीवन जीना चाहते हैं तो चुप रहने के गुण को जरा बलवान कीजिए आजकल तो धैर्य शून्य का ही बोलबाला है बिना नियंत्रण अपमान का विषपान कीजिए जमाना बदल गया खुद को भी बदलो "सूर्य" अपने आत्म सम्मान का भी सम्मान कीजिए ©R K Mishra " सूर्य " #बदलावऔरवक़्त एक अजनबी Ashutosh Mishra Rama Goswami Dikesh Kanani (Vvipdikesh) Sethi Ji
रिंकी✍️
परेशानियां किसे नहीं लेकिन तुम्हारा यूं , जिंदगी से उदासीन होना मुझे पसंद नहीं यह तो मौसम है प्रकृति के रहेंगे कुछ दिन तुम्हारे साथ और फिर बदल जायेंगे तुम शुरुआत करो शुरुआत करो....... एक मुस्कुराहट की । कुछ पल खुद के साथ की एक कप कॉफी और जेब में कुछ टॉफी बस निकल पड़ो खुद से ही करने प्यार के लिए एक खूबसूरत एहसास की तलाश के लिए ✍️ रिंकी ऊर्फ चंद्रविद्या #खुदसेप्यार #बदलावऔरवक़्त #यकदीदी #ज़िन्दगीपासरहतीहै
Abhay Bhadouriya
पुरुष स्वयं को ढाल लेता है भावनाओं को नियंत्रित करके सबकुछ सहकर भी रहता है अटल सा किसी " पर्वत" की तरह... स्त्री स्वयं को ढाल लेती है स्वयं को स्वयं तक सीमित करके सबकुछ आपने भीतर सहेज कर भी शांत सी किसी "समुद्र" की तरह....... मैंने अक्सर देखा है समुद्र की लहरों को पर्वत से टकराते हुए बदलाव का दौर पुरुष स्वयं को ढाल लेता है भावनाओं को नियंत्रित करके सबकुछ सहकर भी रहता अटल सा किसी " पर्वत" की तरह... स्त्री स्वयं को ढाल लेती है
Suditi Jha
देख रही हूं बहुत कुछ इन निगाहों में तेरी बस मेरे लिए अब वो प्यार नजर नहीं आता। बदलाव #qsstichonpic2049 #yqbaba #yqdidi #बदलाव #बदलावऔरवक़्त #yqreality #yqaestheticthoughts #yqrestzone
Adhuri Khwahis
मैं पहले रोता था,ऐसा हमेशा मेरे साथ ही क्यों होता है? और खुद में खामियां ढूंढता था। अब वर्षों में मुझे एहसास हुआ कि वे सब ही एक गंदगी थे, जिसे पार किया जाना था लेकिन गलती से मैंने अपने पैर रख दिए । ©Adhuri Khwahis #बदलावऔरवक़्त #मेरी_बदलाव #Lifelight
Abhay Bhadouriya
बदलाव का दौर पुरुष स्वयं को ढाल लेता है भावनाओं को नियंत्रित करके सबकुछ सहकर भी रहता अटल सा किसी " पर्वत" की तरह... स्त्री स्वयं को ढाल लेती है स्वयं को स्वयं तक सीमित करके सबकुछ आपने भीतर सहेज कर भी शांत सी किसी "समुद्र" की तरह....... मैंने अक्सर देखा है समुद्र की लहरों को पर्वत से टकराते हुए बदलाव का दौर पुरुष स्वयं को ढाल लेता है भावनाओं को नियंत्रित करके सबकुछ सहकर भी रहता अटल सा किसी " पर्वत" की तरह... स्त्री स्वयं को ढाल लेती है
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