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जिस मिट्टी पर जन्में हम सब उन्हें हमनें क्या दिया

जिस मिट्टी पर जन्में हम सब  उन्हें हमनें क्या दिया

सोच - सोच पथिक पग पर राहें अपना बना लिया

जो ठोकरें देकर गिराते थे,  उन्हें ठाकुर बना लिया

बात लोगों को समझ नहीं आई कहा ये क्या किया 

कहा आँखें खुली ना थी तब तक ठोकरें खा लिया 

जिस मिट्टी ने हमें बनाया उन्हें हाथों हाथ उठा लिया 

तिलक लगाकर माथे पर, पगड़ी अपनी बचा लिया 

जिनसे हम ठोकरें खाते रहे, उन्हें 'ख़ुदा' बना लिया

लेखक -प्रमोद मिश्र ( रांँची )

©अनुषी का पिटारा..
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