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जिसे तुम राख़ समझते हो, उससे हम आग जलाते हैं. कमले

जिसे तुम राख़ समझते हो, उससे हम आग जलाते हैं. 
कमलेश शमसान की वीरानगी में भी , बाग लगाते हैं

©Kamlesh Kandpal
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