लुट चुका बाजार आकर क्या करोगे! हो गया है ख़त्म इन्तज़ार ! आकर क्या करोगे! शातिराना चाल चलती है सियासत! वक़्त गूँगा,आदमी लाचार !आकर क्या करोगे! पहुँच से है दूर ग़ुर्बत से अदालत! राह कंटक पूर्ण है झंखाड़ !आकर क्या करोगे! आम जन कैसे करे अपनी हिफ़ाज़त! कर दिए हैं ख़्वाब दरकिनार!आकर क्या करोगे! किस जगह की आप करते हो वक़ालत! हैं सभी जग में किरायेदार! आकर क्या करोगे! लोग करने लगे हैं खुलकर अदावत! निकलती हर बात पर तलवार!आकर क्या करोगे! कोई ताक़तवर की ना करता खिलाफ़त! बन गए सब दोस्त गुंजन यार! आकर क्या करोगे! ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra #आकर क्या करोगे#