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हर दिन एक डर होता है और फिर एक कल होता है फिर चर्च

हर दिन एक डर होता है
और फिर एक कल होता है
फिर चर्चे में एक दिन कम होता है
जख्म गहरा और होता है
कभी उस पर मरहम होता है
तो कभी दर्द की बाम लेता हूँ
मैं ही नही कोई डरा है
कोई तस्वीरों में सहेज रहा
कोई  चंद पल और जी लेता है
चलो हम भी भीड़ बन जाये
साथ उसके जी कर अमीर बन जाये
एक कहानी और गढ़ लू
अगले पड़ाव में सुनने की तासीर बन जाये
हा कहूंगा कि थी वो ऐसी
मैं ही कई और भी मरता था
साथ थोड़ा झुठ कहूँगा
लेकिन प्यार हमी से करता था
है प्यार हमी से करता था

©ranjit Kumar rathour
  कहूंगा झूठ प्यार हमी से करता तंग

कहूंगा झूठ प्यार हमी से करता तंग #कविता

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