अरे तुम क्या जानो दास्तां किसानों की जो जमीन को चीर उम्मीदों को बोए बिना आश्चर्य और साहस को खोए पूरी सृष्टि जिसके कारण चैन से सोए ये हस्ती है इन किसानों की जीवन जीने के लिए बहुमूल्य है ये खुद खाकर रूखी सूखी सबका पेट भरते हैं ये माता पिता के तुल्य हैं ये कौन समझाए इन कुर्सी के दीवानों को जिन्हें लगते आज बबूल है ये अपने खून पसीने से सिंच कर उगाए जेठ की दुपहरी में खेतों में खुद को जलाए इससे पूर्ति नहीं हो पाती इनकी छोटी सी अरमानों की फिर भी डटे रहते हैं खेतों में जैसे जंग हो मैदानों की ये हस्ती है इन किसानों की भूखे इंसान से पूछो क्या महत्व है खानों की उनसे बेहतर कोई नहीं बता सकता जो मोहताज है दानों दानों की इन पर जुर्म करते शर्म भी नहीं आती नियति तो देखो इन जाहिल हुक्मरानों की क्या खूब सिला दिया है इनके एहसानों की क्या कीमत लगाई है इनके उगाए हुए दानों की हर आदेश माने तुम्हारी गुलाम नहीं देश का अभिमान है हम और गर्व से कहते हैं हां हां किसान हैं हम। ©Prashant yadav #Dil#की#वेदनाएं#हां#हम#किसान#हैं #farmersprotest