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ग़ज़ल(आश) एक आश लगाए बैठा है, एक सपना सजाए


     ग़ज़ल(आश)

एक आश लगाए बैठा है,
एक सपना सजाए बैठा है।


ये दिल भी कितना पागल है,
तुझे अपना बनाए बैठा है।


अनमोल थे वो पल बीते जो संग तेरे,
उन स्मरण को सीने से लगाए बैठा है।।


निराश ना कर तू जल्दी आ जा,
आज चांद भी मुंह छुपाए बैठा है।।


एक पल भी चैन नहीं बिन दर्शन तेरे,
अवचेतन मन मुख तेरा बसाए बैठा है।

                    [15]

©Dr.Javed khan
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