यार थोड़ा मुस्कुरा कर देख लो। ज़िन्दगी में लुत्फ़ लाकर देख लो। क्या रखा है ग़म की धुंधली याद में दर्द को दिल से जुदा कर देख लो। ग़म बहुत है ज़िन्दगी में आजकल रोने वाले को हँसा कर देख लो। बैठ कर रोने से हासिल क्या भला आज क़िस्मत आज़मा कर देख लो। आज जो सबके दिलों में जल रही आग नफ़रत की बुझा कर देख लो। भीड़ लाखों हैं मगर तनहा सभी कुछ अकेलापन मिटा कर देख लो। चार दिन की ज़िन्दगी सबको मिली ज़िन्दगी हँस कर, हँसा कर देख लो। रिपुदमन झा "पिनाकी" धनबाद (झारखण्ड) स्वरचित एवं मौलिक ©Ripudaman Jha Pinaki #देख_लो