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बिन तेरे शीशे सा चटक रहा हूं मैं खुद ही खुद को खटक

बिन तेरे शीशे सा चटक रहा हूं मैं
खुद ही खुद को खटक रहा हूं मैं

अब की बार जब भी मिले गले लगा लेना
एक अरसे से खुद की बाहों में भटक रहा हूं मैं

दुष्यंत कुमार ओझा 
उदयपुर राजस्थान

बिन तेरे शीशे सा चटक रहा हूं मैं खुद ही खुद को खटक रहा हूं मैं अब की बार जब भी मिले गले लगा लेना एक अरसे से खुद की बाहों में भटक रहा हूं मैं दुष्यंत कुमार ओझा उदयपुर राजस्थान #शायरी

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