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रात रात भर बात करना जीने मरने की कसमें खाना खुद

रात रात भर बात करना 
जीने मरने की कसमें खाना 
खुद से भी ज्यादा जिसे अपना जाना 
सब को छोड जिसे अपना माना 
जब वो किसी और के संघ चली जाती है
तब ख़ुद पे हँसी आती है!!!

जब हम बहुत छोटे थे तो मिट्टी खाया करते थे 
गर्मियों के दिनों में तीन चार बार नहाया करते थे 
धूल मिट्टी कि फ़िकर छोड कहीं भी बैठ जाया करते थे 
ना, खाने के लिए मम्मी को खूब सताया करते थे 
जब अपनी गुड़ियाभी उन्हीं बातों को दोहराती है
तब ख़ुद पे हँसी आती है!!!

दुनिया को हमने जान लिया 
अपने है ऐसा मान लिया 
सुख दुख में सबके खडा रहा
उन लोगों की सेवा में, नहीं अपना सुध और भान लिया 
समय आने पर यही दुनिया हमसे रिश्ते नहीं निभाती है 
तब ख़ुद पे हँसी आती है!!!

©Santosh Vishwakarma 
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