Nojoto: Largest Storytelling Platform

ग़ज़ल-२५८ (२१२२-२१२२-२१२) ------------------------

ग़ज़ल-२५८ (२१२२-२१२२-२१२)
-----------------------------------
झील का पानी भी खारा था कभी
हमने हर क़तरा निथारा था कभी //१

ग़र्क़ है जो कस्रते सैलाब में
वो नदी का ही किनारा था कभी //२

आज जिनके हाथ में बंदूक़ है
हाथ में उनके ग़ुबारा था कभी //३

इंहिदामों का है मंज़र हर तरफ़ 
शह्र ये मिस्ले बुख़ारा था कभी //४

आज बच्चे इल्तिजा सुनते नहीं
देख लेना भी इशारा था कभी //५

ख़ुद हुए, अहसास हमको तब हुआ
हमने भी मजनूँ को मारा था कभी //६

रफ़्तगाने ख़ाक़ हमसे कहते हैं
जो तुम्हारा है हमारा था कभी //७

राज़ जिन महलों में हैं वीरानियाँ
उनमें जन्नत का नज़ारा था कभी //८

#राज़_नवादवी #mahashivratri
ग़ज़ल-२५८ (२१२२-२१२२-२१२)
-----------------------------------
झील का पानी भी खारा था कभी
हमने हर क़तरा निथारा था कभी //१

ग़र्क़ है जो कस्रते सैलाब में
वो नदी का ही किनारा था कभी //२

आज जिनके हाथ में बंदूक़ है
हाथ में उनके ग़ुबारा था कभी //३

इंहिदामों का है मंज़र हर तरफ़ 
शह्र ये मिस्ले बुख़ारा था कभी //४

आज बच्चे इल्तिजा सुनते नहीं
देख लेना भी इशारा था कभी //५

ख़ुद हुए, अहसास हमको तब हुआ
हमने भी मजनूँ को मारा था कभी //६

रफ़्तगाने ख़ाक़ हमसे कहते हैं
जो तुम्हारा है हमारा था कभी //७

राज़ जिन महलों में हैं वीरानियाँ
उनमें जन्नत का नज़ारा था कभी //८

#राज़_नवादवी #mahashivratri
raznawadwi7818

Raz Nawadwi

New Creator