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तुमसे मिलना था इसलिये संवरना था मगर ये क्या..! द

तुमसे मिलना था 
इसलिये संवरना था 
मगर ये क्या..!
दर्पण में जब ख़ुद को देखा 
उसमें तुम नज़र आये..!!
चौंककर जब दर्पण से पूछा
हमनें-
ये क्या माजरा है नादाँ दर्पण..!! 
बोला यही तो है 
तुम्हारा सच्चा समर्पण..!!

दर्पण हूँ..!, झूठ ना बताऊंगा..!! 
जो तुझमें देखूंगा
वही तो दिखाऊंगा..!!

अब तुझमें तू है कहां
तेरे तो रोम रोम में वही समाया है..!!
जिससे मिलने को 
तूने ख़ुद को सजाया है..!! 
दर्पण की बात सुन 
मैं मदहोश हो गया..!!
दर्पण मुझे देखकर 
बोल गया.. !!
-प्रीत रंग जो रंग गयो, पुनि ना रंग कोउ भाय 
प्रियतम सारा जग भयो पिय बिन कछु न सुहाय..

©अज्ञात
  #दर्पण