(Short Story) Shadow - (Part -2 ) परछाईं - (भाग -2) #परछाईं-2 (#Shadow_part_2) .................................................................... यार आप ऐसा ही करते हो , इसीलिए मैं आपकी शिकायत नानू से करती हूँ:15 साल उम्र की लड़की ने अपने साथ सुपर मार्केट की सीडियों पर चल रहे करीब अपने पिता की उम्र के उस शख्स को लगभग डाँटते हुए लहज़े में कहाँ था! वो शख्स उसकी प्यारी सी डाँट पर मुस्कुराते हुए बोला: एक बात कहूँ, सच में तू जब डाँटती है ना कसम से #Shadow की याद आ जाती है, वो भी ऐसे ही गुस्सा होती थी मेरी गलतियों पर, और मुझे हंसी आ जाती थी , इतने प्यार से कौन डाँटता है! अरे यार फिर से Shadow , अगर आपकी Shadow ने आपसे शादी कर ली होती ना कसम से वो भी रो रही होती , आप लेखक लोग है ना "पागल" होते हो यार! इस बार वो शख्स उसकी बात पर चुप हो गया और कहीं गहरी सोंच में डूब गया, और कितने सालो से ज़मी धूल जैसे उनकी यादों से हट गई , और उन्हें वो दिन याद आया जब किसी ने बिल्कुल यही बात उनसे कही थी : "आप जो कर रहे उसे प्यार नहीं पागलपन कहते हैं", उस समय तो वो कुछ नहीं कह पाए थे , मगर वो नादान जानती ही नहीं थी, "जो इश्क पागलपन की हद से ना गुज़रे वो इश्क होता ही नहीं है!" कुमार साहब उस बात को याद करके मुस्कुरा भर दिए! दोनों यूँहीं नोक झोंक के साथ अंदर दाखिल हुए , उस शख्स को देख कर दुकान के मालिक "पांडे ज़ी" ने उन्हें देखते हुए कहा: आइये "कुमार साहब", आप याशु बिटिया को जाने दो वो ले आएगी सामान आप काहे फिकर करते है , बिटिया होशियार हो गई है आप यंहा बैठिये!