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दीमक है लगता, जो सब कुछ, सफा चाट कर गया। यां है दल

दीमक है लगता,
जो सब कुछ,
सफा चाट कर गया।
यां है दलाल कोई, 
पूंजीपतियों का  है,
जो है घर भर गया।

 हैरान हूं हमारा पैसा,
देश वासियों से छीन कर,
अपनों पे लुटाया जा रहा है।
डिजिटल इंडिया का,
नामों निशान मिटाया जा रहा है।
पूंजीपति रकम डकारें जा रहे हैं।
नेता करोड़ों का चंदा खा रहे हैं।
करोना करोना का रोना रो रो,
हमें मुकाए जा रहें हैं।
बात हमारे दिल की सुनते नहीं,
अपने मन की सुनाये जा रहें हैं।
पैट्रोल डीज़ल के दाम,
 आसमां को निगल गये,
ये ज़िन्दगी हमारी,
 नर्क बनाये जा रहें हैं।

©Sarbjit sangrurvi दीमक है लगता,
जो सब कुछ,
सफा चाट कर गया।
यां है दलाल कोई, 
पूंजीपतियों का  है,
जो है घर भर गया।

 हैरान हूं हमारा पैसा,
दीमक है लगता,
जो सब कुछ,
सफा चाट कर गया।
यां है दलाल कोई, 
पूंजीपतियों का  है,
जो है घर भर गया।

 हैरान हूं हमारा पैसा,
देश वासियों से छीन कर,
अपनों पे लुटाया जा रहा है।
डिजिटल इंडिया का,
नामों निशान मिटाया जा रहा है।
पूंजीपति रकम डकारें जा रहे हैं।
नेता करोड़ों का चंदा खा रहे हैं।
करोना करोना का रोना रो रो,
हमें मुकाए जा रहें हैं।
बात हमारे दिल की सुनते नहीं,
अपने मन की सुनाये जा रहें हैं।
पैट्रोल डीज़ल के दाम,
 आसमां को निगल गये,
ये ज़िन्दगी हमारी,
 नर्क बनाये जा रहें हैं।

©Sarbjit sangrurvi दीमक है लगता,
जो सब कुछ,
सफा चाट कर गया।
यां है दलाल कोई, 
पूंजीपतियों का  है,
जो है घर भर गया।

 हैरान हूं हमारा पैसा,