ज़ब भी गुजरता हूँ बहक जाता हुँ तेरी गली से गुजरते ही महक जाता हुँ फिर पूरा सफर खोया रहता हुँ सोचता तुझको ही ऐसा होता वैसा होता.. कैसा कैसा होता मंज़िल तक पहुंच जाता हुँ तुझे ऐसा कुछ नहीं होता न या फिर बदल गए हो तुम आजकल निकलते नहीं घर से मै हर उम्मीद से ठहर गुजर जाता हुँ जो सच बदल गयी तो यक़ीनन मै सम्हल जाऊंगा जो पल गुजरा उसे सहेज आगे निकल जाऊंगा सोचूंगा जो मिला वो कम तो नहीं वरना कहा मिलता है कोई चंद दिन ही सही इतने प्यार से ©ranjit Kumar rathour चंद दिन प्यार से