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कुछ मलाई खाते है कमलेश , कुछ को मट्ठा भी नसीब नहीं

कुछ मलाई खाते है कमलेश , कुछ को मट्ठा भी नसीब नहीं  
अमीरों से पटा है शहर मेरा पर कैसे कहूं है कोई गरीब नहीं

©Kamlesh Kandpal
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