ये रस्म है एक फरियाद नही मैं क्या हूँ मुझको याद नहीं तुम समझ गए हो इस दिल को तो फिर क्यों कोई आगाज़ नही तुम लाख मुकम्मल बादल हो पर मुझको तेरी प्यास नहीं बरसो जाकर उस महफ़िल में जिसका कल था पर आज नहीं तू रोज बहाने करता चल क्या होगा शायद अंदाज नही ये आसमान तो होगा पर होगी तेरी परवाज़ नहीं मैं तो आवारा शायर हूँ मुझमें है कोई बात नहीं तू तो निज़ाम है मलिक है पर तेरी भी तो औकात नहीं #माधवेन्द्र_फैज़ाबादी