यूँ तो संघर्ष अप्रिय लगते हैं पर मुझे बेहद प्रिय है संघर्ष करना तुम्हें मुस्कुराते हुए देखने के लिए। सैकड़ों की भीड़ में मैं तुम्हें खोज लेता हूँ इधर-उधर निगाहों के संघर्ष से। ठहठहाकों के बीच तुम्हारी मुस्कान माधुर्य और यौवन से परिपूर्ण सुकूँ देती है मेरे संघर्ष को। ©शुभम द्विवेदी संघर्ष