चाँदनी बिखरी हुई है शबनमी ये रात है। बादलों से बरखा रानी कर रही बरसात है।। है घटा घनघोर काली कर रही रिमझिम फुहार। प्रकृति बरसा रही है आज ये अनुपम उपहार।। प्यास धरती की बुझेगी ज़िंदगी खिल जाएगी। झुलसे मुरझाए धरा को ताज़गी मिल जाएगी।। बूँदें बारिश की करेंगी धरती पर अटखेलियाँ। छू में उड़ जाएगी तपती जलती सारी गर्मियाँ।। नवसृजन होगा धरा पर ज़िन्दगी मुस्काएगी। ज़र्रा-ज़र्रा झूमेगा खुशियों के नग़्मे गाएगी।। रिपुदमन झा 'पिनाकी' धनबाद (झारखण्ड) स्वरचित एवं मौलिक ©Ripudaman Jha Pinaki #चाँदनी_रात