भाती है बरबस मुझे बाँसुरी की धुन! बचपन की साध यौवन का प्रमाद और साधना श्वाँसों की... कल मन में बिंधे शूल का समय सिंचित भूल का अंतर्गत राग में ढलना कुनकुनी धूप धीरे-धीरे उतरना बर्फ़ सी जमी साँसों का पिघलना आँखों में नाव कोई चलना अपने ही पीर से आमुख संवाद सुगम करना बंद आँखों में खुलती दुनियाँ लहरों पर श्वाँस-श्वाँस तिरना औचक दृश्यों का बदलना निर्जन नीरव निलय में परदेशी चाँद का निकलना #toyou#resounding#yqresonance#yqlove#yqfindingin