मैं मान हूँ सम्मान हूँ हर घर का हर युग में काल का, हाँ मैं एक स्त्री हूँ, एक आयना हूँ सूरदास समाज का। मेरी चुप्पी को कायरता समझ मखौल उड़ाते हैं, मैं लाज मर्यादा की ख़ातिर मौन ये भूल जाते हैं। मैं जननी हूँ, नित नए अंकुरित खिलाती हूँ, मैं करुणा की मूरत पर बदले में मैं ही धिक्कार पाती हूँ। मेरी आबरू की चुनर अब मैल से भंग होती जा रही, दाग़ लगे हैं इनमे कितने मैं अपने ही रंग की न रही। मैं माँ हूँ, बेटी हूँ, बहन और बहू भी मैं ही हूँ, मैं चरित्रहीन मैं कुलटा समाज की दोहरी मानसिकता भी मैं ही हूँ। एक ओर काली सी पूज्य दूजी ओर साँवली रंगत पर कटु बोल, मन की कालिमा पे सब मौन,तन की कालिमा पे हल्ला शोर?— % & ♥️ Challenge-830 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें। ♥️ अन्य नियम एवं निर्देशों के लिए पिन पोस्ट 📌 पढ़ें।