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अब वक़्त रहा नहीं जब, छुपकर होती थी मुलाकातें, ज

अब वक़्त  रहा नहीं जब, छुपकर  होती थी मुलाकातें,
जब  खत्म  नहीं  होती थी, तुम्हारी  प्यारी प्यारी बातें।

जब पड़ती  थी फुहारें, बिन घटा  रिमझिम  सावन की,
अब तो आब ए चश्म भी सूख चुकी, ना होंगी बरसातें।

अब आदत सी हो चुकी, इन महफिलों से दूर रहने की,
दिल को  वश में  कर  लिया, दफ़न  हो  गये  जज्बातें।

अब तो मुंतजिर है, दिल धड़क रहा  अंतिम दीदार को,
बस अरमां  फ़क़त क़ज़ा की, बन जाए  तन्हा सी रातें।
 📌निचे दिए गए निर्देशों को अवश्य पढ़ें...🙏

💫Collab with रचना का सार..📖

🌄रचना का सार आप सभी कवियों एवं कवयित्रियों  को  प्रतियोगिता:-93 में स्वागत करता है..🙏🙏

*आप सभी 6-8 पंक्तियों में अपनी रचना लिखें। नियम एवं शर्तों के अनुसार चयनित किया जाएगा।
अब वक़्त  रहा नहीं जब, छुपकर  होती थी मुलाकातें,
जब  खत्म  नहीं  होती थी, तुम्हारी  प्यारी प्यारी बातें।

जब पड़ती  थी फुहारें, बिन घटा  रिमझिम  सावन की,
अब तो आब ए चश्म भी सूख चुकी, ना होंगी बरसातें।

अब आदत सी हो चुकी, इन महफिलों से दूर रहने की,
दिल को  वश में  कर  लिया, दफ़न  हो  गये  जज्बातें।

अब तो मुंतजिर है, दिल धड़क रहा  अंतिम दीदार को,
बस अरमां  फ़क़त क़ज़ा की, बन जाए  तन्हा सी रातें।
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