उम्मीद से परे गुज़रा हर लम्हा ज़िन्दगी का मेरा ज़ख्म और आँसू से भरा लम्हा ज़िंदगी का मेरा क़िस्मत का दोष या 'वक़्त' का फ़ेर कहूँ इसे मैं कुछ काम ना आया, ये तजुर्बा ज़िन्दगी का मेरा नादान दिल छला गया ज़िन्दगी के बाज़ार में यूँ बद-क़िस्मत दिल ना पा सका मुकाम ज़िंदगी में घायल तन, मन हो गया, रास ना आई ज़िन्दगी तन्हा, क़िस्मत का मारा, हार आया ज़िन्दगी में — % & ♥️ Challenge-828 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें। ♥️ अन्य नियम एवं निर्देशों के लिए पिन पोस्ट 📌 पढ़ें।