शीर्षक--कहीं बांकी नहीं मेरी दुनिया है .. अब मुझमे कहीं बांकी नहीं है ज़िन्दगी जो वो उनसे ही थी वो थे ज़िन्दगी वो दुनिया मेरे वो लम्हे जो बीते संग साथ उनके उन लम्हों में सिमटी ज़िन्दगी है मेरी उनके होने से होते थे आँखों में काजल माथे पर बिंदी होठों पे लाली पैरो में पायल मेरी दुनिया थे वो मेरी थे ज़िन्दगी मेरी ज़िन्दगी अब मुझमे कहीं बांकी नहीं… बांकी नहीं…—–अभिषेक राजहंस शीर्षक--कहीं बांकी नहीं मेरी दुनिया है .. अब मुझमे कहीं बांकी नहीं है ज़िन्दगी जो वो उनसे ही थी वो थे ज़िन्दगी वो दुनिया मेरे वो लम्हे जो बीते