खोया हूँ खुद को ,अपनी सोचो में गहरे , दिल में बसा हुआ एक अजीब सा दर्द हैं। रातें बीतती हैं , सोता हूँ अकेला , खवाबों की दुनिया में खोया रहता हूँ बेहद गहरा। बिता हुआ कल छिपा हुआ हैं आँखों के पर्दे में , मुस्कानो की पूछे छुपा हुआ हैं दिल का दर्द। बातें होती हैं मगर जज्बातों को छिपा कर , खुद से बातचीत में , खोता हूँ मैं अपना आत्म-संवाद। जीवन की राहों में गुम हूँ कहीं , हर कदम पर मुझको लगता हैं, मैं खोया हूँ कहीं। सोचता हूँ कभी, क्या हैं मेरा मकसद , मगर मैं हूँ , बस अपनी सोंचो में फंसा हुआ। जिंदगी से उबारत, ढूंढता हूँ खुद को , पर कहाँ तक भटका हूँ, ये भी मालूम नहीं मुझको। ©पूर्वार्थ #खुद_की_तलाश