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मैं कोई लेखनी पूरे ईमान से कभी लिख ही नहीं पाया, न

मैं कोई लेखनी पूरे ईमान से कभी लिख ही नहीं पाया,
न ही बुन पाया कोई ऐसी कविता..
जिसमे मेरी संवेदनाओं का निचोड़ हो..
लिख पाया तो बस......

एक कविता के ढांचे में ढाली हुई दस-पंद्रह लाइने,
जिन्हें मैं कर देता हूँ, हुनरमंदों के अक्ल के हवाले, 
और फिर इंतजार करता हूँ अपनी बारी का.....

बाजार खुलते हैं और बोली लगती है,
कभी एक वाह कभी वाह-वाह और न जाने क्या-क्या,

फिर सोचता हूँ अच्छा किया मैंने, 
अच्छा किया मैंने-गद्दारी करके
ईमान से लिखता तो शायद देख नहीं पाता

एक कविता को यूं लूटते हुए, टूटते हुए और मरते हुए....!!!!!

♥️♥️♥️

©Khyali Joshi #HeartBook
मैं कोई लेखनी पूरे ईमान से कभी लिख ही नहीं पाया,
न ही बुन पाया कोई ऐसी कविता..
जिसमे मेरी संवेदनाओं का निचोड़ हो..
लिख पाया तो बस......

एक कविता के ढांचे में ढाली हुई दस-पंद्रह लाइने,
जिन्हें मैं कर देता हूँ, हुनरमंदों के अक्ल के हवाले, 
और फिर इंतजार करता हूँ अपनी बारी का.....

बाजार खुलते हैं और बोली लगती है,
कभी एक वाह कभी वाह-वाह और न जाने क्या-क्या,

फिर सोचता हूँ अच्छा किया मैंने, 
अच्छा किया मैंने-गद्दारी करके
ईमान से लिखता तो शायद देख नहीं पाता

एक कविता को यूं लूटते हुए, टूटते हुए और मरते हुए....!!!!!

♥️♥️♥️

©Khyali Joshi #HeartBook